रविवार, 8 अप्रैल 2012

विश्वगुरु बनने का एक्सन प्लान


”विश्वशास्त्र“ के शास्त्राकार का  धीरे का झटका

21 दिसम्बर, 2012 को मायां कैलेण्डर के व्याख्याकारों के अनुसार दुनिया का सर्वनाश होगा। परन्तु ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है। बल्कि उस दिन से युग परिवर्तन का समय ”विश्वशास्त्र“ के माध्यम से और सत्यकाशी तीर्थ का निर्माण प्रारम्भ हो जायेगा। कितना विचित्र संयोग है कि विन्ध्य क्षेत्र से ही भारत का मानक समय निर्धारित होता है और इसी क्षेत्र से युग परिवर्तन की घोषणा हो रही है। यह भी विचित्रता ही है कि व्यासजी द्वारा काशी को शाप देने के कारण विश्वेश्वर ने व्यासजी को काशी से निष्कासित कर दिया था और वे गंगा पार आ गये और गंगा पार से ही उनके बाद विश्वशास्त्र रचना हुई है।
जिस प्रकार त्रेतायुग से द्वापरयुग में परिवर्तन के लिए वाल्मिकि रचित ”रामायण“ आया, जिस प्रकार द्वापरयुग से कलियुग में परिवर्तन के लिए महर्षि व्यास रचित ”महाभारत“ आया उसी प्रकार कलियुग से पाँचवें युग-स्वर्णयुग में परिवर्तन के लिए ”विश्वशास्त्र“ सत्यकाशी क्षेत्र जो वाराणसी-विन्ध्याचल-शिवद्वार-सोनभद्र के बीच का क्षेत्र है से भारत और विश्व को दिया जा रहा है। 
द्वापरयुग में भी सभी विचारों का एकीकरण कर एक शास्त्र ”गीता“ बनाया गया था। गीता, ज्ञान का शास्त्र है जबकि विश्वशास्त्र ज्ञान समाहित कर्मज्ञान का शास्त्र है अर्थात गीता, सत्व, रज और तम गुणों से ऊपर उठकर ईश्वरत्व से एकाकार की शिक्षा देती है जबकि विश्वशास्त्र उससे आगे ईश्वरत्व से एकाकार के उपरान्त ईश्वर कैसे कार्य करता है उस कर्मज्ञान के बारे में बताती है। 
श्रीराम के कारण चित्रकूट पर्यटन व धार्मिक क्षेत्र बना, श्रीकृष्ण के कारण मथुरा, द्वारिका पर्यटन व धार्मिक क्षेत्र बना, भगवान बुद्ध के कारण सारनाथ, कुशीनगर, बोधगया पर्यटन व धार्मिक क्षेत्र बना। ”विश्वशास्त्र“ के कारण सत्यकाशी स्थापित है। भगवान बुद्ध के कारण काशी के उत्तर में काशी का प्रसार हुआ, विश्वशास्त्र के कारण काशी के दक्षिण में काशी का प्रसार होगा। अभी पिछले महीने में जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी ने दण्डी स्वामी शिवानन्द द्वारा लिखित और उनके द्वारा खोज पर आधारित पुस्तक ”वृहद चैरासी कोस परिक्रमा“ का श्री विद्यामठ में विमोचन किये हैं। सत्यकाशी क्षेत्र के निवासीयों को जानना चाहिए कि इस चैरासी कोस परिक्रमा में सत्यकाशी क्षेत्र के भाग भी शामिल हो चुके हैं। 
एक तरफ देश के सामाजसेवी और राजनेता व्यवस्था परिवर्तन के लिए अनशन और रथयात्रा कर रहें है जिनके पास ऐसा करने का कोई प्रारूप नहीं है, और दूसरी तरफ इसका पूर्ण प्रारूप ”विश्वशास्त्र“ के रूप में यहाँ उपलब्ध है। 
जिस प्रकार भारत में एक राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा), एक राष्ट्रीय पक्षी (भारतीय मोर), एक राष्ट्रीय पुष्प (कमल), एक राष्ट्रीय पेड़ (भारतीय बरगद), एक राष्ट्रीय गान (जन गण मन), एक राष्ट्रीय नदी (गंगा), एक राष्ट्रीय प्रतीक (सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ का सिंह), एक राष्ट्रीय पंचांग (शक संवत पर आधारित), एक राष्ट्रीय पशु (बाघ), एक राष्ट्रीय गीत (वन्दे मातरम्), एक राष्ट्रीय फल (आम), एक राष्ट्रीय खेल (हाॅकी), एक राष्ट्रीय मुद्रा चिन्ह, एक संविधान है उसी प्रकार एक राष्ट्रीय शास्त्र भी भारत का होना चाहिए। जिसके लिए विश्वशास्त्र मात्र एक प्रथम दावेदार है और यह अन्तिम भी हो सकता है।
सर्वप्रथम युग शारीरिक शक्ति आधारित था, फिर आर्थिक शक्ति आधारित वर्तमान युग चल रहा है। अब आगे आने वाला समय ज्ञान शक्ति आधारित हो रही है। वर्तमान में रहने का अर्थ है कि वैश्विक ज्ञान जहाँ तक पहुँच चुका है उसके बराबर स्वयं को रखना। किसी व्यक्ति या क्षेत्र को विकसित क्षेत्र तभी कहा जाता है जब वह शारीरिक, आर्थिक व मानसिक तीनों क्षेत्र में विकास करे। समस्त व्यापार मात्र तीन शारीरिक, आर्थिक व मानसिक विषय पर ही केन्द्रित है, जिसकी अपनी शक्ति सीमा हैं।
”दो या दो से अधिक माध्यमों से उत्पादित एक ही उत्पाद के गुणता के मापांकन के लिए मानक ही एक मात्र उपाय है। सतत् विकास के क्रम में मानकों का निर्धारण अति आवश्यक कार्य है। उत्पादों के मानक के अलावा सबसे जरुरी यह है कि मानव संसाधन की गुणता का मानक निर्धारित हो क्योंकि राष्ट्र के आधुनिकीकरण के लिए प्रत्येक व्यक्ति के मन को भी आधुनिक अर्थात् वैश्विक-ब्रह्माण्डीय करना पड़ेगा। तभी मनुष्यता के पूर्ण उपयोग के साथ मनुष्य द्वारा मनुष्य के सही उपयोग का मार्ग प्रशस्त होगा। उत्कृष्ट उत्पादों के लक्ष्य के साथ हमारा लक्ष्य उत्कृष्ट मनुष्य के उत्पादन से भी होना चाहिए जिससे हम लगातार विकास के विरुद्ध नकारात्मक मनुष्योें की संख्या कम कर सकें। भूमण्डलीकरण सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में कर देने से समस्या हल नहीं होती क्योंकि यदि मनुष्य के मन का भूमण्डलीकरण हम नहीं करते तो इसके लाभों को हम नहीं समझ सकते। आर्थिक संसाधनों में सबसे बड़ा संसाधन मनुष्य ही है। मनुष्य का भूमण्डलीकरण तभी हो सकता है जब मन के विश्वमानक का निर्धारण हो। ऐसा होने पर हम सभी को मनुष्यों की गुणता के मापांकन का पैमाना प्राप्त कर लेगें, साथ ही स्वयं व्यक्ति भी अपना मापांकन भी कर सकेगा। जो विश्व मानव समाज के लिए सर्वाधिक महत्व का विषय होगा। विश्वमानक शून्य श्रृंखला मन का विश्व मानक है जिसका निर्धारण व प्रकाशन हो चुका है जो यह निश्चित करता है कि समाज इस स्तर का हो चुका है या इस स्तर का होना चाहिए। यदि यह सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित होगा तो निश्चित ही अन्तिम मानक होगा। जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय ज्ञान, जय कर्मज्ञान।’’

विश्व सरकार के लिए पुनः भारत द्वारा शून्य आधारित अन्तिम आविष्कार

शून्य का प्रथम आविष्कार का परिचय- 

        शून्य (0), दशमलव संख्या प्रणाली में संख्या है। यह दशमलव प्रणाली का मूलभूत आधार भी है। किसी भी संख्या को शून्य से गुणा करने से शून्य प्राप्त होता है। किसी भी संख्या को शून्य से जोड़ने या घटाने पर वही संख्या प्राप्त होती है।
शून्य का आविष्कार किसने और कब किया यह आज तक अंधकार के गर्त में छुपा हुआ है परन्तु सम्पूर्ण विश्व में यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि शून्य का आविष्कार भारत में ही हुआ है। ऐसी भी कथाएँ प्रचलित हैं कि पहली बार शून्य का आविष्कार बाबिल में हुआ और दूसरी बार माया सभ्यता के लोगों ने इसका आविष्कार किया पर दोनों ही बार के आविष्कार संख्या प्रणाली को प्रभावित करने में असमर्थ रहे तथा विश्व के लोगों ने इसे भुला दिया। फिर भारत में हिन्दुओं ने तीसरी बार शून्य का आविष्कार किया। हिन्दुओं ने शून्य के विषय में कैसे जाना यह आज भी अनुत्तरित प्रश्न है। अधिकतम विद्वानों का मत है कि पाँचवीं शताब्दी के मध्य में शून्य का आविष्कार किया गया। सन् 498 में भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलवेक्ता आर्यभट्ट ने कहा ”स्थानं स्थानं दसा गुणम्“ अर्थात दस गुना करने के लिए संख्या के आगे शून्य रखो। और शायद यही संख्या के दशमलव सिद्धान्त का उद्भव रहा होगा। आर्यभट्ट द्वारा रचित गणितीय खगोलशास्त्र ग्रन्थ आर्यभट्टीय के संख्या प्रणाली में शून्य तथा उसके लिए विशिष्ट संकेत सम्मिलित था। इसी कारण से उन्हें संख्याओं को शब्दों में प्रदर्शित करने का अवसर मिला। प्रचीन बक्षाली लिपि में, जिसका कि सही काल अब तक निश्चित नहीं हो पाया है परन्तु निश्चित रूप से उसका काल आर्यभट्ट के काल से प्राचीन है, शून्य का प्रयोग किया गया है और उसके लिए उसमें संकेत भी निश्चित है। उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि भारत में शून्य का प्रयोग ब्रह्मगुप्त रचित ग्रन्थ ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त में पाया गया है। इस ग्रन्थ में नकारात्मक संख्याओं और बीजगणितीय सिद्धान्तो का भी प्रयोग हुआ है। 7वीं शताब्दी जो ब्रह्मगुप्त का काल था, शून्य से सम्बन्धित विचार कम्बोडिया तक पहुँच चुके थे और दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि बाद में ये कम्बोडिया से चीन तथा अन्य मुस्लिम संसार में फैल गये। इस बार भारत में हिन्दुओं के द्वारा आविष्कृत शून्य ने समस्त विश्व की संख्या प्रणाली को प्रभावित किया और सम्पूर्ण विश्व को जानकारी मिली। मध्य-पूर्व में स्थित अरब देशों ने भी शून्य को भारतीय विद्वानों से प्राप्त किया। अन्ततः 12वीं शताब्दी में भारत का यह शून्य पश्चिम में यूरोप तक पहुँचा।

शून्य पर अन्तिम आविष्कार का परिचय- 

      सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त एक ही सत्य-सिद्धान्त द्वारा व्यक्तिगत व संयुक्त मन को एकमुखी कर सर्वोच्च, मूल और अन्तिम स्तर पर स्थापित करने के लिए WS-0 श्रृंखला की निम्नलिखित पाँच शाखाएँ है।
1. डब्ल्यू.एस. - 0 : विचार एवम् साहित्य का विश्वमानक
2. डब्ल्यू.एस. - 00 : विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक
3. डब्ल्यू.एस. - 000 : ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म व स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
4. डब्ल्यू.एस. - 0000          : मानव (सूक्ष्म व स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
5. डब्ल्यू.एस. - 00000 : उपासना और उपासना स्थल का विश्वमानक
आविष्कार की उपयोगिता - वर्तमान समय के भारत तथा विश्व की इच्छा शान्ति का बहुआयामी विचार-अन्तरिक्ष, पाताल, पृथ्वी और सारे चराचर जगत में एकात्म भाव उत्पन्न कर अभय का साम्राज्य पैदा करना और समस्याओं के हल में इसकी मूल उपयोगिता है। साथ ही विश्व में एक धर्म- विश्वधर्म-सार्वभौम धर्म, एक शिक्षा-विश्व शिक्षा, एक न्याय व्यवस्था, एक अर्थव्यवस्था, एक संविधान, एक शास्त्र स्थापित करने में है। भारत के लिए यह अधिक लाभकारी है क्योंकि यहाँ सांस्कृतिक विविधता है। जिससे सभी धर्म-संस्कृति को सम्मान देते हुए एक सूत्र में बाँधने के लिए सर्वमान्य धर्म उपलब्ध हो जायेगा। साथ ही संविधान, शिक्षा व शिक्षा प्रणाली व विषय आधारित विवाद को उसके सत्य-सैद्धान्तिक स्वरूप से हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है। साथ ही पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी से संकीर्ण मानसिकता से व्यक्ति को उठाकर व्यापक मानसिकता युक्त व्यक्ति में स्थापित किये जाने में आविष्कार की उपयोगिता है। जिससे विध्वंसक मानव का उत्पादन दर कम हो सके। ऐसा न होने पर नकारात्मक मानसिकता के मानवो का विकास तेजी से बढ़ता जायेगा और मनुष्यता की शक्ति उन्हीं को रोकने में खर्च हो जायेगी। यह आविष्कार सार्वभौम लोक या गण या या जन का निराकार रूप है इसलिए इसकी उपयोगिता स्वस्थ समाज, स्वस्थ लोकतन्त्र, स्वस्थ उद्योग तथा व्यवस्था के सत्यीकरण की प्राप्ति में है अर्थात मानव संसाधन की गुणवत्ता का विश्वमानक की प्राप्ति और ब्रह्माण्ड की सटीक व्याख्या में है। मनुष्य किसी भी पेशे में हो लेकिन उसके मन का भूमण्डलीयकरण, एकीकरण, सत्यीकरण, ब्रह्माण्डीयकरण करने में इसकी उपयोगिता है जिससे मानव शक्ति सहित संस्थागत और शासन शक्ति को एक कर्मज्ञान से युक्त कर ब्रह्माण्डीय विकास में एकमुखी किया जा सके।

मन के विश्वमानक के विश्वव्यापी स्थापना के स्पष्ट 5 मार्ग

मन (मानव संसाधन) के अन्तर्राष्ट्रीय / विश्व मानक श्रृंखला के विश्वव्यापी स्थापना के निम्नलिखित शासनिक प्रक्रिया द्वारा स्पष्ट मार्ग है। 
1. जनता द्वारा - जनता व जन संगठन जनहित के लिए सर्वोच्च न्यायालय में यह याचिका दायर की जा सकती है कि सभी प्रकार के संगठन जैसे- राजनीतिक दल, औद्योगिक समूह, शिक्षण समूह जनता को यह बतायें कि वह किस प्रकार के मन का निर्माण कर रहा है तथा उसका मानक क्या है? इसी प्रकार 1. पूर्ण शिक्षा का अधिकार 2.राष्ट्रीय शास्त्र 3. नागरिक मन निर्माण का मानक 4. सार्वजनिक प्रमाणित सत्य-सिद्धान्त 5. गणराज्य का सत्य रूप के माध्यम से सर्वोच्च कार्य करने का भी अवसर जनता व जन संगठन को उपलब्ध कराता है। 
2. भारत सरकार द्वारा - भारत सरकार इस श्रृंखला को स्थापित करने के लिए संसद में प्रस्ताव प्रस्तुत कर अपने संस्थान भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के माध्यम से समकक्ष श्रृंखला स्थापित कर विश्वव्यापी स्थापना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में भी प्रस्तुत कर संयुक्त राष्ट्र संघ के पुर्नगठन व पूर्ण लोकतंत्र की प्राप्ति के लिए मार्ग दिखा सकता है। 
3. राजनीतिक दल द्वारा - भारत का कोई एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल विश्व राजनीतिक पार्टी संघ (WPPO)  का गठन कर प्रत्येक देश से एक राजनीतिक दल को संघ में साथ लेते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ पर स्थापना के लिए दबाव बना सकता है।
4. सयुंक्त राष्ट्र संघ (UNO) द्वारा - संयुक्त राष्ट्र संघ सीधे इस मानक श्रृंखला को स्थापना के लिए अपने सदस्य देशो के महासभा के समक्ष प्रस्तुत कर अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन व विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से सभी देशो में स्थापित करने के लिए उसी प्रकार बाध्य कर सकता है, जिस प्रकार ISO-9000 व ISO-14000 श्रृंखला का विश्वव्यापी स्थापना हो रहा है।  
5. अन्र्तराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) द्वारा - अन्र्तराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन सीधे इस श्रृंखला को स्थापित कर सभी देशो के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ व विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से सभी देशो में स्थापित करने के लिए उसी प्रकार बाध्य कर सकता है, जिस प्रकार ISO-9000 व ISO-14000 श्रृंखला का विश्वव्यापी स्थापना हो रहा है।
                                                        - लवकुश सिंह ”विश्वमानव“, विश्वशास्त्र के शास्त्राकार

कल्कि देवी : युगों से प्रतीक्षारत वैष्णो देवी का साकार रूप



वैश्णों देवी की कथा
(कटरा-जम्मू में कथा के सम्बन्ध में बिकने वाली पुस्तिका, इन्टरनेट पर उपलब्ध कथा और गुलषन कुमार कृत ”माँ वैश्णों देवी“ प्रदर्षित फिल्म पर आधारित कथा)



       वैश्णों देवी मन्दिर षक्ति को समर्पित एक पवित्रतम् हिन्दू मन्दिर है जो भारत के जम्मू और कष्मीर राज्य में कटरा के पास पहाड़ी पर स्थित है। यह उत्तरी भारत के सबसे पूज्यनीय पवित्र स्थानों में से एक है। मन्दिर 5300 फीट की ऊँचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हिन्दू धर्म में वैश्णों देवी को, जो माता रानी और वैश्णवी के नाम से भी जानी जाती है, देवीजी का अवतार हैं। हर वर्श लाखो तीर्थयात्री मन्दिर का दर्षन करते हैं। और यह भारत में तिरूमला वेंकटेष्वर मन्दिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ स्थल है। इस मन्दिर की देख-रेख श्री माता वैश्णो देवी तीर्थ मण्डल द्वारा की जाती है। तीर्थ यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए उधमपुर से कटरा तक एक रेल सम्पर्क बनाया जा रहा है। 
हिन्दू महाकाव्य के अनुसार, माँ वैश्णों देवी ने दक्षिण भारत में रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया। इनके लौकिक माता-पिता लम्बे समय तक निःसन्तान थे। दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर ने वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आयेंगें। माँ वैश्णों देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था। बाद में भगवान विश्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैश्णवी कहलायी। जब त्रिकुटा नौ साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही। त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विश्णु से प्रार्थना की। सीता की खोज करते समय श्रीराम अपनी सेना के साथ समुद्र किनारे पहुँचें। उनकी दृश्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी। त्रिकुटा ने श्रीराम से कहा- उसने उन्हें पति रूप् में स्वीकार किया है। श्रीराम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निश्ठावान रहने का वचन लिया है लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप् में प्रकट होगें और उससे विवाह करेगें। इस बीच, श्रीराम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफाा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा। रावण के विरूद्ध श्रीराम की विजय के लिए माँ ने नवरात्र मनाने का निर्णय लिया। इसलिए उक्त सन्दर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा माँ वैश्णों देवी की स्तुति गाई जायेगी। त्रिकुटा, वैश्णों देवी के रूप में प्रसिद्ध होगी और सदा के लिए अमर हो जायेगी। 
समय के साथ-साथ, देवी माँ के बारे में कई कहानियाँ उभरी, ऐसी ही एक कहानी है श्रीधर की। श्रीधर माँ वैश्णों के प्रबल भक्त थे। वे वर्तमान कटरा से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हंसली गाँव में रहते थे। एक बार माँ ने मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दिये। युवा लड़की ने विनम्र पण्डित से भण्डारा (भिक्षुकों व भक्तों के लिए एक प्रीतिभोज) आयोजित करने के लिए कहा। पण्डित गाँव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े। उन्होंने एक स्वार्थी राक्षस ”भैरव नाथ“ को भी आमंत्रित किया। भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए योजना बना रहें हैं। उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया, चूँकि पण्डित जी चिंता में डूब गये, दिव्य बालिका प्रकट हुई और कहा कि वे निराश न हों सब व्यवस्था हो चुकी है। उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो। उनके कहे अनुसार ही भण्डारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विध्न आयोजन सम्पन्न हुआ। भैरव नाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शक्तियाँ थी और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य वालिका का पीछा किया। 9 महीनों तक भैरव नाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूढता रहा, जिसे वह देवी माँ का अवतार मानता था। भैरव से दूर भागते हुये देवी ने पृथ्वी पर एक बाण (तीर) चलाया, जिससे पानी फूटकर बाहर निकला। यही नदी बाणगंगा के रूप में जानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा में में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं। नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी माँ के पैरों के निशान हैं जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं। इसके बाद वैश्णों देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहाँ वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियाँ प्राप्त की। भैरव द्वारा उन्हें ढूढ़ लेने पर उनकी साधना भ्ंाग हुई। जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैश्णों देवी ने महाकाली का रूप लिया। दरबार में पवित्र गुफा के द्वार पर देवी माँ प्रकट हुई। देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर, धड़ से अलग किया कि खोपड़ी पवित्र गुफा से 2.5 किलोमीटर की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी।  भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की। देवी जानती थी थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया कि भक्त द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कि तीर्थ-यात्रा सम्पन्न हो चुकी है, यह आवश्यक होगा कि वह देवी माँ के दर्शन के बाद, पवित्र गुफा के पास भैरव नाथ के मन्दिर के भी दर्शन करें। इस बीच वैश्णों देवी ने तीन पिण्ड सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं। इस बीच पण्डित श्रीधर अधीर हो गये। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था। अन्ततः वे गुफा के द्वार पर पहुँचें। उन्होंने कई विधियों से ”पिण्डों“ की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली। देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुई और उन्हें आशीर्वाद दिया। तब से श्रीधर और उनके वंशज माँ वैश्णों देवी की पूजा करते आ रहे हैं।

उपरोक्त कथा द्वारा कल्कि अवतार एवं वैश्णों देवी के सम्बन्ध पर ही आधारित है कल्कि देवी की कथा



शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

विश्वशास्त्र की विषय सूची


विश्वशास्त्र की विषय सूची

विशय-प्रवेष
01. काॅपीराइट, बौद्धिक सम्पदा व पेटेण्ट अधिनियम के अन्तर्गत विष्व के सभी देषों को सार्वजनिक सूचना।
02. भूमिका
03. षास्त्र साहित्य समीक्षा
- डाॅ0 कन्हैया लाल, एम.ए., एम.फिल.पीएच.डी (समाजषास्त्र-बी.एच.यू.)
- डाॅ0 राम व्यास सिंह, एम.ए., पीएच.डी (योग, आई.एम.एस-बी.एच.यू.)
04. विष्व या जगत्
05. ब्रह्माण्ड या व्यापार केन्द्र: एक अनन्त व्यापार क्षेत्र
06. ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति
07. ब्लैक होल और आत्मा
08. सौर मण्डल
09. पृथ्वी
10. पुस्तक का मुख-पृश्ठ ष्याम (काला) - ष्वेत (सफेद) क्यों?
11. षुक्रवार,21 दिसम्बर,2012 ई. के बाद षनिवार,22 दिसम्बर,2012 ई. से पाँचवें, प्रथम और अन्तिम स्वर्णयुग का आरम्भ
अ. हिन्दू षास्त्र व मान्यता के अनुसार
1. सामान्य के अनुसार
2. पं0 श्रीराम षर्मा आचार्य के अनुसार
3. अन्य के अनुसार
ब. बौद्ध धर्म के अनुसार
स. मायां कैलण्डर के अनुसार
द. ईसाई षास्त्र के अनुसार
य. यहूदी षास्त्र के अनुसार
र. इस्लाम षास्त्र के अनुसार
ल. सिक्ख धर्म के अनुसार
व. विभिन्न भविश्यवाणीयाँे के अनुसार
ष. उपरोक्त आँकड़ों पर व्याख्या
ह. कल्कि अवतार और लव कुष सिंह ”विष्वमानव“
12. विष्व का सर्वोच्च आविश्कार-मन का विष्वमानक तथा पूर्णमानव निर्माण की तकनीकी
1. आविश्कार क्यों हुआ?
2. आविश्कारकत्र्ता कौन है?
क. भौतिक रूप से-
ख. आर्थिक रूप से-
ग. मानसिक रूप से-
घ. नाम रूप से -
च. समय रूप से -
4. आविश्कार विशय क्या है?
5. आविश्कार की उपयोगिता क्या है?
3. आविश्कार किस प्रकार हुआ?
13. विष्व समाज को अन्तिम सार्वभौम-सत्य संदेष
14. मानवों के नाम खुला चुनौती पत्र
15. प्रारम्भ और अन्त के पहले दिव्य-दृश्टि
16. षास्त्र - संगठन और उसका दर्षन
17. विशय-सूची

विशय - सूची

अध्याय - एक

भाग - 1: ईष्वर, अवतार और पुनर्जन्म
1. ईष्वर और ईष्वर का संक्षिप्त इतिहास
2. अवतार और पुनर्जन्म
3. ईष्वर के अवतार
4. ब्रह्मा के अवतार
5. विश्णु के अवतार
6. षंकर के अवतार

भाग - 2: विश्णु के प्रथम नौ अवतार
अवतार चक्र मार्ग से
(पहले सभी अवतार और अब अन्त में मैं)
पहलायुगः सत्ययुग
अ. व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्ण प्रत्यक्ष अवतार
1. प्रथम अवतार
2. द्वितीय अवतार
3. तृतीय अवतार
4. चतुर्थ अवतार
5. पंाचवाॅ अवतार
ब. सार्वजनिक प्रमाणित अंष प्रत्यक्ष अवतार
6. छठा अवतार
दूसरायुगः त्रेतायुग

स. सार्वजनिक प्रमाणित पूर्ण प्रत्यक्ष अवतार
7. सातवाँ अवतार - रामायण
तीसरायुगः द्वापरयुग

द. व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्ण प्रेरक अवतार
8. आठवाँ अवतार - महाभारत
चैथायुगः कलियुग

य. सार्वजनिक प्रमाणित अंष प्रेरक अवतार
9. नौवाँ अवतार

भाग - 3: विश्णु के दसवें और अन्तिम अवतार के समय विष्व की स्थिति, उसके विकास की स्थिति एवं परिणाम
क: स्थिति
1. राज्य अर्थात षासन की स्थिति
अ. विष्व स्तर पर राज्य अर्थात् षासन की स्थिति
ब. भारत देष स्तर पर षासन अर्थात् राज्य की स्थिति
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर राज्य अर्थात षासन की स्थिति
द. राज्य अर्थात् षासन स्तर पर राज्य अर्थात् षासन की स्थिति
र. भारतीय परिवार स्तर पर राज्य अर्थात षासन की स्थिति
ल. भारतीय व्यक्ति स्तर पर राज्य अर्थात् षासन की स्थिति
2. विज्ञान की स्थिति-
अ. विष्व स्तर पर विज्ञान की स्थिति
ब. भारत देष स्तर पर विज्ञान र्की िस्थति
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर विज्ञान की स्थिति
द. राज्य अर्थात् षासन पर पिज्ञान की स्थिति
य. भारतीय समाज पर विज्ञान की स्थिति
र. भारतीय परिवार पर विज्ञान की स्थिति
ल. भारतीय व्यक्ति पर विज्ञान की स्थिति
3. धर्म की स्थिति
अ. विष्व स्तर पर धर्म की स्थिति
ब. भारत देष स्तर पर धर्म की स्थिति
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर धर्म की स्थिति
द. राज्य अर्थात् षासन पर धर्म की स्थिति
य. भारतीय समाज पर धर्म की स्थिति
र. भारतीय परिवार पर धर्म की स्थिति
ल. भारतीय व्यक्ति पर धर्म की स्थिति
4. व्यापार की स्थिति
अ. विष्व स्तर पर व्यापार की स्थिति
ब. भारत देष स्तर पर व्यापार की स्थिति
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर व्यापार की स्थिति
द. राज्य अर्थात् षासन पर व्यापार की स्थिति
य. भारतीय समाज पर व्यापार की स्थिति
र. भारतीय परिवार पर व्यापार की स्थिति
ल. भारतीय व्यक्ति पर व्यापार की स्थिति  
5. समाज की स्थिति:
अ. विष्व स्तर पर समाज की स्थिति
ब. भारत देष स्तर पर समाज की स्थिति
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर समाज की स्थिति
द. राज्य अर्थात् षासन पर समाज की स्थिति
य. भारतीय समाज पर समाज की स्थिति
र. भारतीय परिवार पर समाज की स्थिति
ल. भारतीय व्यक्ति पर समाज की स्थिति
6. परिवार केी स्थितिः
अ. विष्व स्तर पर परिवार की स्थिति
ब. भारत देष स्तर पर परिवार की स्थिति
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर परिवार की स्थिति
द. राज्य स्तर पर परिवार की स्थिति
य. भारतीय समाज स्तर पर परिवार की स्थिति
र. भारतीय परिवार स्तर पर परिवार की स्थिति
ल. भारतीय व्यक्ति स्तर पर परिवार की स्थिति
7. व्यक्ति की स्थिति
अ. विष्व स्तर पर व्यक्ति की स्थिति
ब. भारत देष स्तर पर व्यक्ति की स्थिति
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर व्यक्ति की स्थिति
द. राज्य स्तर पर व्यक्ति की स्थिति
य. भारतीय समाज स्तर पर व्यक्ति की स्थिति
र. भारतीय परिवार स्तर पर व्यक्ति की स्थिति
ल. भारतीय व्यक्ति स्तर पर व्यक्ति की स्थिति
ख: स्थिति के विकास की स्थिति
ग: परिणाम
01. राज्य अर्थात् षासन का परिणाम
अ. विष्व स्ता पर राज्य अथवा षासन का परिणाम
ब. भारत देष स्तर पर राज्य अर्थात् षासन का परिणाम
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर राज्य अर्थात् षासन का परिणाम
द. राज्य अर्थात् षासन स्तर पर राज्य अर्थात् षासन का परिणाम
य. भारतीय समाज स्तर पर राज्य अर्थात् षासन का परिणाम
र. भारतीय परिवार स्तर पर राज्य अर्थात् षासन का परिणाम
ल. व्यक्ति स्तर पर राज्य अर्थात् षासन का परिणाम
02. विज्ञान का परिणाम
अ. विष्व स्तर पर विज्ञान का परिणाम
ब. भारत देष स्तर पर विज्ञान का परिणाम
द. राज्य अर्थात् षासन पर विज्ञान का परिणाम
य. भारतीय समाज पर विज्ञान का परिणाम
र. भारतीय परिवार पर विज्ञान का परिणाम
ल. भारतीय व्यक्ति पर विज्ञान का परिणाम
03. धर्म का परिणाम
अ. विष्व स्तर पर धर्म का परिणम
ब. भरत देष स्तर पर धर्म का परिणाम
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर धर्म का परिणाम
य. भारतीय समाज पर धर्म का परिणाम
र. भारतीय परिवार पर धर्म का परिणाम
ल. भारतीय व्यक्ति पर धर्म का परिणाम
04. व्यापार का परिणाम
अ. विष्व स्तर पर व्यापार का परिणम
ब. भरत देष स्तर पर व्यापार का परिणाम
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर व्यापार का परिणाम
य. भारतीय समाज पर व्यापार का परिणाम
र. भारतीय परिवार पर व्यापार का परिणाम
ल. भारतीय व्यक्ति पर व्यापार का परिणाम
05. समाज का परिणाम
अ. विष्व स्तर पर समाज का परिणम
ब. भरत देष स्तर पर समाज का परिणाम
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर समाज का परिणाम
य. भारतीय समाज पर समाज का परिणाम
र. भारतीय परिवार पर समाज का परिणाम
ल. भारतीय व्यक्ति पर समाज का परिणाम
06. परिवार का परिणाम
अ. विष्व स्तर पर परिवार का परिणाम
ब. भारत देष स्तर पर परिवार का परिणाम
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर परिवार का परिणाम
द. राज्य स्तर पर परिवार का परिणाम
य. भारतीय समाज स्तर पर परिवार का परिणाम
र. भारतीय परिवार स्तर पर परिवार का परिणाम
ल. भारतीय व्यक्ति स्तर पर परिवार का परिणाम
07. व्यक्ति का परिणाम
अ. विष्व स्तर पर व्यक्ति का परिणाम
ब. भारत देष स्तर पर व्यक्ति का परिणाम
स. अन्तर्राश्ट्रीय स्तर पर व्यक्ति का परिणाम
द. राज्य स्तर पर व्यक्ति का परिणाम
य. भारतीय समाज स्तर पर व्यक्ति का परिणाम
र. भारतीय परिवार स्तर पर व्यक्ति का परिणाम
ल. भारतीय व्यक्ति स्तर पर व्यक्ति का परिणाम
  08. स्थिति के विकास का परिणाम
  09़. विज्ञान का राज्य और धर्म पर प्रभाव
  10. ब्रह्माण्डीय स्थिति और परिणाम
11. विष्व के समक्ष भारत की स्थिति और परिणाम
12. दृष्य पदार्थ विज्ञान और अदृष्य आध्यात्म विज्ञान-स्थिति एवं परिणाम

भाग - 4: विश्णु के दसवें और अन्तिम अवतार
पाँचवाँयुगः स्वर्णयुग/सत्ययुग
र. सार्वजनिक प्रमाणित पूर्ण प्रेरक अवतार
10. दसवाँ और अन्तिम अवतार - विष्वभारत
पूर्व कथा -
 भविश्य के लिए प्रक्षेपित कल्कि अवतार की कथा
 वैश्णों देवी की कथा
 उपरोक्त कथा द्वारा कल्कि अवतार एवं वैश्णों देवी का सम्बन्ध
 काषी का परिचय
वर्तमान कथा -
 वर्तमान में व्यक्त कल्कि अवतार की कथा
 कलयुग की देवी कल्कि देवी की कथा
 कल्कि देवी का परिचय एवं रूप
 सत्यकाषी: काषी (वाराणसी)-सोनभद्र-षिवद्वार-विन्ध्याचल
के बीच का क्षेत्र का परिचय
 सत्यकाषी में षास्त्र से सम्बन्धित स्थल
      जरगो नदी और लवकुष सिंह ”विष्वमानव“
 जरगो बाँध: एक दिव्य स्थल निर्माण क्षेत्र
      धर्म स्थापनार्थ दुश्ट वध और साधुजन का कल्याण कैसे और किसका?
भाग - 5: जन्म, ज्ञान व कर्म परिचय (सारांष)
1. योगेष्वर श्री कृश्ण
2. स्वामी विवेकानन्द
3. भोगेष्वर श्री लवकुष सिंह ”विष्वमानव“
4. स्वामी विवेकानन्द की वाणीयाँ जो भोगेष्वर श्री लवकुष सिंह”विष्वमानव“ के जीवन में सत्य है।
5. स्वामी विवेकानन्द और भोगेष्वर श्री लवकुष सिंह ”विष्वमानव“ के जीवन काल का घटना-चक्र

अध्याय - दो: जीवन परिचय

भाग - 1: मानव सभ्यता का विकास और जाति की उत्पत्ति
1. वंश
अ.ब्रह्म वंश
ब.सूर्य (विवस्वान) वंश
(क) कुश वंश
(ख) लव वंश
स.चन्द्र (ऐल) वंश
2. गोत्र
3. आदि पुरूश महर्शि कूर्म-कश्यप
अ. कूर्मवंशी क्षत्रिय के वंश
ब. कूर्मवंशी क्षत्रिय के कुछ कुल
स. कूर्मवंशी क्षत्रिय के कुछ उपाधियाँ
द. कूर्मवंशी क्षत्रिय रियासतें
य. कूर्मवंशी क्षत्रिय वंश के महान विभूतियाँ
भाग - 2: 1. पारिवारीक पृश्ठभूमि
2. जन्म
3. जन्म एवं निवास स्थल
4. जन्म कुण्डली
5. हथेली व पैर के तलवे का चित्र
भाग - 3: षिक्षा, भ्रमण व देषाटन
भाग - 4: मित्र व सहयोगी
भाग - 5: जीवन यात्रा कें कुछ रोचक चरित्र व घटनायें


अध्याय - तीन: ज्ञान परिचय

भाग -1: धर्म
भाग -2: पुराण रहस्य
1. महर्शि व्यास पौराणिक कथा लेखन कला
2. पुराणः धर्म, धर्मनिरपेक्ष एवम् यथार्थ अनुभव की अन्तिम सत्य दृश्टि
क. पुराणों की सत्य दृश्टि
ख. ब्रह्मा अर्थात् एकात्मज्ञान परिवार
ग. विश्णु अर्थात एकात्म ज्ञान सहित एकात्म कर्म परिवार
घ. षिव-षंकर अर्थात एकात्म ज्ञान और एकात्म कर्म सहित एकात्म ध्यान परिवार
च. ब्रह्माण्ड परिवार
3. ”गीता“ का अन्त तथा ”कर्मवेद“ के प्रारम्भ का आधार
4. कालभैरव कथा: कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेदषिव-षंकर अधिकृत है, ब्रह्मा अधिकृत नहीं
5. षिव और जीव
भाग -3: विष्व-नागरिक धर्म का धर्मयुक्त धर्मषास्त्र
कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचम वेदीय श्रृंखला
भाग -4: विष्व-राज्य धर्म का धर्मनिरपेक्ष धर्मषास्त्र
विष्वमानक षून्य-मन की गुणवत्ता का विष्वमानक श्रृंखला
उप भाग-1: मानक एवं मानकीकरण संगठन परिचय
प्ण्  मानक एवं  मानकीकरण संगठन
प्प्ण् अन्तर्राश्ट्रीय माप-तौल ब्यूरो
प्प्ण् अन्तर्राश्ट्रीय मानकीकरण संगठन ;प्ैव्द्ध
प्टण् भारतीय मानक ब्यूरो ;ठप्ैद्ध
टण्   मानक के सम्बन्ध में विभिन्न वक्तव्य व्यक्ति भी हो सकते हैं आई. एस. ओ. मार्का
1. पं0 जवाहर लाल नेहरु
2. श्री मती इन्दिरा गाँधी
3. श्री राजीव गाँधी
4. डब्ल्यू0.टी.कैबेनो.
5. श्री कोफी अन्नान (नोबेल षान्ति पुरस्कार से सम्मानित) पूर्व महासचिव, संयुक्त राश्ट्र संघ
पहले मानक के सम्बन्ध में विभिन्न वक्तव्य और अब अन्त में मेरा वक्तव्य और विष्वमानक
- लवकुष सिंह ”विष्वमानव“
उप भाग-2: गणराज्य व संघ परिचय
प्ण्  राज्य व गणराज्य: उत्पत्ति और अर्थ
प्प्ण् भारत गणराज्य: संक्षिप्त षासकीय परिचय
प्प्प्ण् संयुक्त राश्ट्र संघ ;न्छव्द्ध: परिचय, उद्देष्य एवम् कार्यप्रणाली
1. वीटो पावर - संयुक्त राज्य अमेरिका ;न्ैद्ध
2. वीटो पावर - फ्रांस
3. वीटो पावर - रूस
4. वीटो पावर - चीन
5. वीटो पावर - ब्रिटेन ;न्ज्ञद्ध
प्टण् गणराज्य: अन्तिम विष्व षासन प्रणाली
टण् ग्राम सरकार व विष्व सरकार: एक प्रारूप
उप भाग-3: मन की गुणवत्ता का विष्वमानक परिचय
प्ण्  आविश्कार विशय और उसकी उपयोगिता
प्प्ण्  विष्वकल्याणार्थ आविश्कार की स्थापना कब और कैसे?
प्प्प्ण् वैष्विक मानव निर्माण तकनीकी- ॅब्ड.ज्स्ड.ैभ्ल्।डण्ब् प्रणाली
तकनीकी का नाम ैभ्ल्।डण्ब्  क्यों?
ै . ै।ज्ल्। ( सत्य )
भ्. भ्म्।त्ज् ( हृदय )
ल्. ल्व्ळ ( योग )
। . ।ैभ्त्।ड ( आश्रम )
ड . डम्क्प्ज्।ज्प्व्छ ( ध्यान )
ण् . क्व्ज्  ( बिन्दु या डाॅट या दषमलव या पूर्णविराम )
ब् . ब्व्छब्प्व्न्ैछम्ैै  ( चेतना )
प्टण् आदर्ष वैष्विक मानव/जन/गण/लोक/स्व/मैं/आत्मा/तन्त्र का सत्य रूप
टण् विष्व मानक-षून्य ;ॅै.0द्ध: मन की गुणवत्ता का विष्व मानक श्रृखंला
1. डब्ल्यू.एस. ;ॅैद्ध.0 ः विचार एवम् साहित्य का विष्वमानक
2. डब्ल्यू.एस. ;ॅैद्ध.00ः विशय एवम् विषेशज्ञों की परिभाशा का विष्वमानक
3. डब्ल्यू.एस. ;ॅैद्ध.000ः ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का   विष्वमानक
ईष्वर नाम
अदृष्य एवं दृष्य ईष्वर नाम
अदृष्य ईष्वर नाम-”ऊँ“षब्द का दर्षन
दृष्य ईष्वर नाम- ज्त्।क्म् ब्म्छज्त्म् षब्द का दर्षन
ट्रेड सेन्टर के सात चक्र
दृष्य सात चक्र के आधार पर संचालक के प्रकार
दृष्य योग और दृष्य ध्यान
1. षासन प्रणाली का विष्वमानक
2. संचालक का विष्वमानक
अवतारी (सत्य युक्त, संयुक्तमन) षासन बनाम मानवी (सत्यरहित संयुक्तमन) षासन प्रणाली
3. गणराज्य या लोकतन्त्र के स्वरूप का विष्वमानक
4. संविधान के स्वरूप का विष्वमानक
5. षिक्षा व षिक्षा पाठ्यक्रम के स्वरूप का विष्वमानक
4. डब्ल्यू.एस. ;ॅैद्ध.0000ः मानव (सूक्ष्म तथा स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का    विष्वमानक
5. डब्ल्यू.एस. ;ॅैद्ध.00000ः उपासना और उपासना स्थल का विष्वमानक

उप भाग-4: पत्रावली, षंखनाद एवं जनहित याचिका का प्रारूप
1. समय-समय पर वितरित मुद्रित सामग्री
2. समय-समय पर भेजे गये पत्र
3. समय-समय पर प्राप्त पत्र
4. षंखनाद
01. नागरिको को आह्वान
02. विचारको को आह्वान
03. शिक्षण क्षेत्र से जुड़े आचार्याे को आह्वान
04. प्रबंध शिक्षा क्षेत्र को आह्वान
05. शिक्षा पाठ्यक्रम निर्माता को आह्वान
06. पत्रकारिता को आह्वान
07. मानकीकरण संगठन और औद्योगिक जगत को आह्वान
08. फिल्म निर्माण उद्योग को को आह्वान
09. धर्म क्षेत्र को आह्वान
10. राजनीतिक दलो को आह्वान
11. सरकार / षासन को आह्वान
12. संसद को आह्वान
13. सर्वोच्च न्यायालय को आह्वान
5.जनहित याचिका का प्रारूप
1. पूर्ण षिक्षा का अधिकार
2. राश्ट्रीय षास्त्र
3. नागरिक मन निर्माण का मानक
4. सार्वजनिक प्रमाणित सत्य-सिद्धान्त
5. गणराज्य का सत्य रूप
उप भाग-5: ईष्वर का मस्तिश्क, मानव का मस्तिश्क और कम्प्यूटर

भाग -5: विष्व षान्ति का अन्तिम मार्ग
1. एकात्मकर्मवाद और विष्व का भविश्य
2. विष्व का मूल मन्त्र- ”जय जवान- जय किसान- जय विज्ञान- जय ज्ञान-जय कर्मज्ञान“
3. विष्वमानक-षून्य श्रंृखला (निर्माण का आध्यात्मिक न्यूट्रान बम)
4. भारत का संकट, हल, विष्वनेतृत्व की अहिंसक स्पश्ट दृष्य नीति, सर्वोच्च संकट और विवषता
5. गण्राज्य-संघ को मार्गदर्षन
प्ण्  गणराज्यों के संघ-भारत को सत्य और अन्तिम मार्गदर्षन
प्प्ण् राश्ट्रो के संघ - संयुक्त राश्ट्र संघ को सत्य और अन्तिम मार्गदर्षन
प्प्प्ण् अवतारी संविधान से मिलकर भारतीय संविधान बनायेगा विष्व सरकार का संविधान
प्टण् ”भारत“ के विष्वरूप का नाम है-”इण्डिया“
टण् विष्व सरकार के लिए पुनः भारत द्वारा षून्य आधारित अन्तिम आविश्कार
- षून्य का प्रथम आविश्कार का परिचय
- षून्य आधारित अन्तिम आविश्कार का परिचय

अध्याय - चार: कर्म परिचय
(सार्वजनिक प्रमाणित दृष्य महायज्ञ)
1. विष्व षान्ति
2. विष्व धर्म संसद
1. विष्व धर्म संसद-सन् 1893 ई0 परिचय
स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान,
1. धर्म महासभा-स्वागत भाशण का उत्तर, दिनांक 11 सितम्बर, 1893
2. हमारे मतभेद का कारण, 15 सितम्बर, 1893
3. हिन्दू धर्म, 19 सितम्बर, 1893
4. धर्म भारत की प्रधान आवश्यकता नहीं, 20 सितम्बर, 1893
5. बौद्ध धर्म, 26 सितम्बर, 1893
6. धन्यवाद भाशण, 27 सितम्बर, 1893
2. विष्व धर्म संसद-सन् 1993 ई0 परिचय
3. विष्व धर्म संसद-सन् 1999 ई0 परिचय
4. विष्व धर्म संसद-सन् 2004 ई0 परिचय
5. विष्व धर्म संसद-सन् 2009 ई0 परिचय
3. संयुक्त राश्ट्र संघ द्वारा आयोजित सहस्त्राब्दि सम्मेलन-2000 ई0
1. राश्ट्राध्यक्षों का सम्मेलन
2. धार्मिक एवं आध्यात्मिक नेताओं का सम्मेलन
4. विष्व षान्ति के लिए गठित ट्रस्टों की स्पश्ट नीति
5. मेरे विष्व षान्ति के कार्य हेतू बनाये गये सभी ट्रस्ट मानवता के लिए सत्य-कार्य एवं दान के लिए सुयोग्य पात्र

भाग - 1: सत्ययोगानन्द मठ (ट्रस्ट)
भाग - 2: प्राकृतिक सत्य मिषन (ट्रस्ट)
1. राश्ट्रीय रचनात्मक आन्दोलनःस्वायत्तषासी उपसमिति / संगठन
प्ण्  प्राकृतिक सत्य एवं धार्मिक षिक्षा प्रसार केन्द्र (ब्म्छज्त्म्)
प्प्ण् ट्रेड सेन्टर (ज्त्।क्म् ब्म्छज्त्म्)
प्प्प्ण् विष्व राजनीतिक पार्टी संघ (ॅच्च्व्)
(क) परिचय  
(ख) राश्ट्रीय क्रान्ति मोर्चा
(ग) राश्ट्रीय सहजीवन आन्दोलन
(घ) स्वराज-सुराज आन्दोलन
(च) विष्व एकीकरण आन्दोलन (सैद्धान्तिक)
2. प्राकृतिक सत्य मिषन के विष्वव्यापी स्थापना का स्पश्ट मार्ग
3. राम कृश्ण मिषन और प्राकृतिक सत्य मिषन
भाग - 3: विष्वमानव फाउण्डेषन (ट्रस्ट)
भाग - 4: सत्यकाषी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विष्वविद्यालय (ट्रस्ट)
भाग - 5: सत्यकाषी (ट्रस्ट)

अध्याय-पाँचःसार्वजनिक प्रमाणित विष्वरूप


भाग - 1: चक्रान्त
01. पुर्नजन्म चक्र मार्ग से
पहले स्वामी विवेकानन्द और अब अन्त में मैं
02. अवतार चक्र मार्ग से
पहले सभी अवतार और अब अन्त में मैं
03. धर्म प्रवर्तक और उनका धर्म चक्र मार्ग से
धर्म ज्ञान का प्रारम्भ
01.वैदिक धर्म-ऋशि-मुनि गण-ईसापूर्व 6000-2500
सत्ययुग के धर्म
02.ब्राह्मण धर्म-ब्राह्मण गण-ईसापूर्व 6000-2500
त्रेतायुग के धर्म
03.वैदिक धर्म-श्रीराम-ईसापूर्व 6000-2500
द्वापरयुग के धर्म
04.वेदान्त अद्वैत धर्म-श्रीकृश्ण-ईसापूर्व 3000
कलियुग के धर्म
05.यहूदी धर्म
06.पारसी धर्म-जरथ्रुसट-ईसापूर्व 1700
07.बौद्ध धर्म-भगवान बुद्ध-ईसापूर्व 1567-487
08.कन्फ्यूसी धर्म-कन्फ्यूसियष-ईसापूर्व 551-479
09.टोईज्म धर्म-लोओत्से-ईसापूर्व 604-518
10.जैन धर्म-भगवान महावीर-ईसापूर्व 539-467
11.ईसाइ धर्म-ईसा मसीह-सन् 33 ई0
12.इस्लाम धर्म-मुहम्मद पैगम्बर-सन् 670 ई0
13.सिक्ख धर्म-गुरु नानक-सन् 1510 ई0
स्वर्णयुग धर्म (धर्म ज्ञान का अन्त)
पहले विभिन्न धर्म प्रवर्तक और अब अन्त में मैं और मेरा विष्वधर्म
14.विष्व/सत्र्य/धर्मनिरपेक्ष धर्म-लवकुष सिंह”विष्वमानव“-सन् 2012 ई0
04. आचार्य और दर्षन चक्र मार्ग से
ब. आस्तिक ईष्वर कारण है अर्थात ईष्वर को मानना
अ. स्वतन्त्र आधार
1. कपिल मुनि - संाख्य दर्षन
2. पतंजलि- योग दर्षन
3. महर्शि गौतम- न्याय दर्षन
4. कणाद- वैषेशिक दर्षन
ब. वैदिक ग्रन्थों पर आधारित
अ. कर्मकाण्ड पर आधारित
1. जैमिनि- मीमांसा दर्षन
  ब. ज्ञानकाण्ड अर्थात उपनिशद् पर आधारित
1. द्वैताद्वैत वेदंात दर्षन - श्रीमद् निम्बार्काचार्य
2. अद्वैत वेदंात दर्षन - आदि षंकराचार्य
3. विषिश्टाद्वैत वेदंात दर्षन - श्रीमद् रामानुजाचार्य
4. द्वैत वेदंात दर्षन - श्रीमद् माध्वाचार्य
5. षुद्धाद्वैत वेदंात दर्षन - श्रीमद् वल्लभाचार्य
ब. नास्तिक - ईष्वर कारण नहीं है अर्थात ईष्वर को न मानना
1. चार्वाक- चार्वाक दर्षन
2. भगवान महावीर- जैन दर्षन
3. भगवान बुद्ध- बौद्ध दर्षन
पहले विभिन्न आचार्य तथा उनके दर्षन और अब अन्त में मैं और मेरा विकास दर्षन
05. गुरू चक्र मार्ग से
1. श्री रामकृश्ण परमहंस एवं श्रीमाँ षारदा देवी
2. महर्शि अरविन्द
3. आचार्य रजनीष ”ओषो“
4. श्री सत्योगानन्द उर्फ भुईधराबाबा
5. श्री श्री रविषंकर
पहले विभिन्न गुरू और अब अन्त में मैं
06. संत चक्र मार्ग से
1. संत श्री रामानन्द
2. गोरक्षनाथ
3. धर्म सम्राट करपात्री जी
4. सांई बाबा षिरडी वाले
5. अवधूत भगवान राम
पहले विभिन्न संत और अब अन्त में मैं
07. समाज और सम्प्रदाय चक्र मार्ग से
1. राजाराम मोहन राय-ब्रह्म समाज
2. केषवचन्द्र सेन-प्रार्थना समाज
3. स्वामी दयानन्द-आर्य समाज
4. श्रीमती एनीबेसेन्ट-थीयोसोफीकल सोसायटी
5. स्वामी विवेकानन्द-राम कृश्ण मिषन
पहले विभिन्न समाज सुधारक और अब अन्त में मेरा ईष्वरीय समाज
08. सत्य षास्त्र-साहित्य चक्र मार्ग से
1. श्री हरिवंष राय बच्चन - ”मधुषाला“
2. स्वामी अड़गड़ानन्द - ”यथार्थ गीता“
3. श्री मनु षर्मा - ”कृश्ण की आत्मकथा“
4. श्री बिल गेट्स - ”बिजनेस / द स्पीड आॅफ थाॅट“
5. श्री स्टीफेन हाॅकिंग -”समय का संक्षिप्त इतिहास“
पहले विभिन्न सत्य षास्त्र-साहित्य और अब अन्त में मेरा विष्वषास्त्र
09. कृति चक्र मार्ग से
1. पं0 मदन मोहन मालवीय - ”काषी हिन्दू विष्वविद्यालय (वाराणसी)“
2. पं0 श्रीराम षर्मा आचार्य -”अखिल विष्व गायत्री परिवार (ऋृशिकेष)“
3. नानाजी देषमुख -”दीनदयाल षोध संस्थान (चित्रकूट)“
4. महर्शि महेष योगी -”महर्शि यूनिवर्सिटी आॅफ मैनेजमेन्ट“
5. बाबा रामदेव -”पंतजलि योगपीठ (हरिद्वार)“
पहले विभिन्न कृति और अब अन्त में मेरी कृति- सत्यकाषी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विष्वविद्यालय
10. भूतपूर्व धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक नेतृत्वकर्ता चक्र मार्ग से
(भारत तथा विष्व के नेत्तृत्वकत्र्ताओं के चिंतन पर दिये गये वक्तव्य का स्पश्टीकरण)
01. महात्मा गाँधी
02. पं0 जवाहर लाल नेहरु
03. लाल बहादुर षास्त्री
04. सर्वपल्ली राधाकृश्णनन्
05. सरदार वल्लभ भाई पटेल
06. राम मनोहर लोहिया
07. पं0 दीन दयाल उपाध्याय
08. बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर
09. लोकनायक जय प्रकाष नारायण
10. श्री विष्वनाथ प्रताप सिंह
11. श्री के.आर.नारायणन
12. श्री षंकर दयाल षर्मा
13. श्री आर.वेंकटरामन
14. पोप जाॅन पाल, द्वितीय
15. श्री चन्द्रषेखर
पहले विभिन्न भूतपूर्व धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक नेतृत्वकर्ता और अब अन्त में मैं
  11. वर्तमान धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक नेतृत्वकर्ता चक्र मार्ग से
(भारत तथा विष्व के नेत्तृत्वकत्र्ताओं के चिंतन पर दिये गये वक्तव्य का स्पश्टीकरण)
01. भारतीय संसद
02. भारतीय सर्वोच्च न्यायालय
03. विष्व षान्ति सम्मेलन
04. स्वामी स्वरूपानन्द
05. श्री रोमेष भण्डारी
06. श्री अटल बिहारी वाजपेयी
07. श्री मुरली मनोहर जोषी
08. स्वामी षिवानन्द
09. श्रीमती सोनिया गाँधी
10. श्री केषरी नाथ त्रिपाठी
11. दलाई लामा
12. जयेन्द्र सरस्वती
13. श्री अषोक सिंघल
14. श्री के. एस. सुदर्षन
15. श्री परषुराम वी. सावंत
16. श्री बिल क्लिन्टन
17. श्री कौफी अन्नान
18. श्री लाल कृश्ण आडवाणी
19. श्री वी.एस.नाॅयपाल
20. श्री मती षीला दीक्षित
21. श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
22. श्री बराक ओबामा
23. श्री बी.एल.जोषी
24. श्री एस.एन.श्रीवास्तव
25. श्री एच.आर.भारद्वाज
26. श्री फर्दिनो इनासियो रिबेलो
27. श्री गिरधर मालवीय
28. डाॅ0 कर्ण सिंह
29. श्री हामिद अंसारी
30. श्रीमती प्रतिभा पाटिल
31. श्री यदुनाथ सिंह
32. बाबा रामदेव
33. श्री अन्ना हजारे
34. श्री सैम पित्रोदा
पहले विभिन्न वर्तमान धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक नेतृत्वकर्ता और अब अन्त में मैं

12. सत्यमित्रानन्द गिरी -”भारत माता मन्दिर (ऋृशिकेष)“
पहले भारतमाता मन्दिर और अब अन्त में उसमें मैं और मेरा विष्वधर्म मन्दिर
13. पहले मैं और अब अन्त में मैं ही मैं
भाग - 2: वार्ता, वक्तव्य एवम् दिषाबोध
भाग - 3: सत्य-अर्थ एवम् मार्गदर्षन
भाग - 4: वाणीयाँ एवम् उद्गार
भाग - 5: मैं (व्यक्तिगत या सार्वभौम)
01. क्यों असम्भव था व्यक्ति, संत-महात्माओं-धर्माचार्यो, राजनेताओं और विद्वानो द्वारा यह    अन्तिम कार्य ?
02. भोगेष्वर रुप (कर्मज्ञान का विष्वरुप): मैं एक हूँ परन्तु अनेक नामों से जाना जाता हूँ
03. एक ही मानव षरीर के जीवन, ज्ञान और कर्म के विभिन्न विशय क्षेत्र से मुख्य नाम
   (सर्वोच्च, अन्तिम और दृष्य)
04. एक ही ”विष्वषास्त्र“ साहित्य के विभिन्न नाम और उसकी व्याख्या
05.  बसुधैव कुटुम्बकम्

परिषिश्ट - अ - स्वामी विवेकानन्द


1. धर्म-विज्ञान
2. योग क्या है?
3. ज्ञान योग
4. राजयोग
5. भक्ति योग
6. प्रेम योग
7. कर्मयोग

परिषिश्ट - ब - लवकुष सिंह ”विष्वमानव“


1. निर्माण के मार्ग
2. मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा
3. ईष्वर, अवतार और मानव की षक्ति सीमा
4. पाँचवें युग - स्वर्णयुग में प्रवेष का आमंत्रण
5. मैं-विष्वात्मा ने भारतीय संविधान की धारा-51 (ए): नागरिक का मौलिक कत्र्तव्य अनुसार अपना धर्म कत्र्तव्य निभाया

एक ही ”विष्वषास्त्र“ साहित्य के विभिन्न नाम


एक ही ”विष्वषास्त्र“ साहित्य के विभिन्न नाम


धर्म क्षेत्र से नाम 


01.कर्मवेद
02.षब्दवेद
03.सत्यवेद
04.सूक्ष्मवेद
05.दृष्यवेद
06.पूर्णवेद
07.अघोरवेद
08.विष्ववेद    
09.ऋृशिवेद
10.मूलवेद
11.षिववेद
12.आत्मवेद
13.अन्तवेद
14.जनवेद
15.स्ववेद
16.लोकवेद              
17. कल्किवेद
18.धर्मवेद
19.व्यासवेद
20.सार्वभौमवेद
21.ईषवेद
22.ध्यानवेद
23.प्रेमवेद
24.योगवेद  
25.स्वरवेद
26.वाणीवेद
27.ज्ञानवेद
28.युगवेद
29.स्वर्णयुगवेद
30.समर्पणवेद
31.उपासनावेद
32. षववेद
33.मैंवेद
34.अहंवेद
35.तमवेद
36.सत्वेद
37.रजवेद
38.कालवेद
39.कालावेद
40.कालीवेद              
41.षक्तिवेद
42.षून्यवेद
43.यथार्थवेद
44.कृश्णवेद सभी प्रथम, अन्तिम तथा पंचम वेद
45.कर्मोपनिशद् - अन्तिम उपनिशद्
46.कर्म वेदान्त
47.धर्मयुक्त धर्म षास्त्र
48.ईष्वर
49.ईष्वर का संक्षिप्त इतिहास      
50.ईष्वर-षास्त्र
51. पुनर्जन्म
52.श्री लवकुषःपूर्ण प्रेरक अन्तिम कल्कि अवतार
53. भोगेष्वरःयोगेष्वर समाहित
54.पूर्णदृष्य-मैं
55.बहुरूप में एक
56. ईष्वर का मस्तिश्क
57.सत्य-षिव-सुन्दर
58.विष्वभारतःसार्वजनिक प्रमाणित महाभारत
59.विष्व-पुराण
60.विष्व-धर्मःसर्वधर्म समाहित
61.विष्व-कलाःकृश्ण-कला समाहित          
62.विष्व-गुरू
63.विष्व भक्ति
64.सत्य-पुराण
65.सत्य-धर्म
66.सत्य-कलाःकृश्ण-कला समाहित            
67.सत्य-गुरू
68.सत्य भक्ति
69.सत्यकाषीःपंचम, सप्तम और अन्तिम काषी
70.द्वारिकाःस्वर्णयुग का प्रवेष द्वार
71.कृश्ण निर्माण योजना
72.धारा और राधा
73.षिवद्वारःषिवयुग का प्रवेष द्वार
74. जीव का षिव में निर्माण
75.सत्व-रज-तम: राम-कृश्ण-लवकुष
76. लवकुषःसेतू या से तू
77.भोग मायाःयोग माया समाहित
78.मैं हूँ तैतीस करोड़
79.अर्धनारीष्वर
80. काल-काली-काला
81. सृश्टि-स्थिति-प्रलय और सृश्टि      
82.पषुपास्त्रःब्रह्मास्त्र व नारायणास्त्र समाहित
83.पुराण पुरूशः सर्वोच्च व अन्तिम
84.पुराणःसर्वोच्च व अन्तिम
85.धर्मःसर्वोच्च व अन्तिम
86.आत्माःसर्वोच्च व अन्तिम
87.गुरूःसर्वोच्च व अन्तिम
88.महायज्ञःसर्वोच्च व अन्तिम
89.तीसरा नेत्र


धर्मनिरपेक्ष व सर्वधर्मसमभाव क्षेत्र से नाम 


1.मार्ग
2.बुद्धि
3.अहंकार
4.व्यापार
5.महत्वाकांक्षा
6.युग पुरूश
7.षंखनाद
8.उपासना
9.योग
10.मानक
11.एजेण्डा
12.कला
13.ध्यान
14.समर्पण
15.लीला
16.समन्वयाचार्य
17.दर्पण
18.मन
19.षिक्षा
20.रूप
21.विष्वमानव
22.बुद्धि
23.चेतना
24.प्रकाष
25.दृश्टि
26.मार्ग
27.राजनीति
28.एकता
29.षान्ति
30.सेवा
31.भक्ति
32.बन्धुत्व
33.जातिवाद
34.अहंकार
35.दर्षन, सभी सर्वोच्च व अन्तिम                  
36.विकास-दर्षन
37.विनाष-दर्षन
38.एकात्मकर्मवाद
39.मस्तिश्क परावर्तक (ब्रेन टर्मिनेटर)
40.धर्मनिरपेक्ष धर्म षास्त्र
41.लोकतंत्र धर्म षास्त्र
42. लोक-षास्त्र
43.जन-षास्त्र
44.स्व-षास्त्र
45.लोक नायक षास्त्र
46. यथार्थ-प्रकाष
47.लोक/जन/स्व तंत्र
48.एकात्म विज्ञान
49.मानक विज्ञान
50.पूर्ण ज्ञान
51.कर्म ज्ञान    
52.जय ज्ञान-जय कर्म ज्ञान
53. विष्व-उपासना
54.विष्व-योग
55.विष्व-मानक
56. विष्व-राश्ट्र-जन एजेण्डा
57.विष्व-ध्यान
58.विष्व-समर्पण
59. विष्व-लीला
60.विष्व-आत्मा
61.विष्व-समन्वयाचार्य          
62. विष्व-दर्पण
63.विष्व-मन
64.विष्व-षिक्षा
65.विष्व-रूप
66. विष्वमानव - विष्वमन से युक्त    
67.विष्व-बुद्धि
68.विष्व-चेतना
69. विष्व-प्रकाष
70.विष्व-दृश्टि
71.विष्व-मार्ग
72. विष्व-राजनीति
73. विष्व एकता
74.विष्व षान्ति
75.विष्व सेवा
76.विष्व महायज्ञः सार्वजनिक प्रमाणित दृष्य              
77.विष्व-बन्धुत्व
78.विष्व जातिवाद
79. विष्व अहंकार
80.सत्य-भारत
81.सत्य-उपासना
82.सत्य-योग
83.सत्य-ध्यान
84.सत्य-मानक
85.सत्य-राश्ट्र-जन एजेण्डा
86. सत्य-ध्यान
87.सत्य-समर्पण
88.सत्य-लीला
89.सत्य-आत्मा
90. सत्य-समन्वयाचार्य
91.सत्य-दर्पण
92.सत्य-मन
93.सत्य-षिक्षा
94. सत्य-रूप  
95.सत्य-मानवःसत्य-मन से युक्त
96. सत्य-बुद्धि
97. सत्य-चेतना
98.सत्य-प्रकाष
99.सत्य-दृश्टि
100.सत्य-मार्ग
101. सत्य-राजनीति
102.सत्य एकता
103.सत्य षान्ति
104.सत्य सेवा
105.सत्य महायज्ञःसार्वजनिक प्रमाणित दृष्य
106.सत्य-बन्धुत्व
107. सत्य जातिवाद
108.सत्य अहंकार
109.स्वर्णयुग का प्रथम मानव
110. मात्र यही हूँ-मानो या ना मानो
111.पाँचवा और अन्तिम सूर्य  
112. चक्रान्त - चक्र का अन्त
113.दिव्य-दृश्टि
114.दिव्य-रूप
115. दृष्य-योग
116.दृष्य-ध्यान
117.ज्ञान बम
118.आध्यात्मिक न्यूट्रान बम
119. सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त
120.मानक एवं मन का विष्व मानक और पूर्ण वैष्विक मानव निर्माण की तकनीकी
121.मन का ब्रह्माण्डीयकरण
122. सार्वभौम दर्पण- व्यक्ति से ब्रह्माण्ड तक
123.सम्पूर्ण क्रान्ति-प्रथम, अन्तिम और सर्वोच्च क्रान्ति
124. सामाजिक अभियंत्रण (सोषल इंजिनीयरींग)
125.सन् 2012ःपाँचवें और अन्तिम स्वर्ण युग का आरम्भ वर्श
126.आध्यात्मिक ब्लैक होल
127.तख्तापलट
128.एक आवाज, मधुषाला से
129.आॅकड़ा (डाटा)
130.मंथन रत्न
131.काला किताब
132.पूर्ण सकारात्मक विचार
133.विष्व संविधान का आधार
134. एक अलग यात्रा
135.समभोगःएकात्म भाव से भोग
136.सर्वजन हिताय - सर्वजन सुखाय
137.वसुधैव कुटुम्बकम्
138.सर्वेभवन्तु सुखिनः
139.अगीतांजलि
140.सत्य षास्त्र

विष्वषास्त्र-साहित्य समीक्षा


विष्वषास्त्र-साहित्य समीक्षा

वीर युग के श्री राम जो एक सत्य और मर्यादा के विग्रह, आदर्श पुत्र, आदर्श पति, पिता थे। वे भी हमारी तरह भौतिक शरीर वाले ही मनुश्य थे। भगवान श्री कृश्ण जिन्होने ”मैं, अनासक्त कर्म और ज्ञान योग“, स्वामी विवेकानन्द जिन्होनंे ”विश्व धर्म के लिए वेदान्त की व्यावहारिकता“, शंकराचार्य जिन्होने ”मंै और शिव“, महावीर जिन्होने ”निर्वाण“, गुरू नानक जिन्होनंे ”शब्द शक्ति“, मुहम्मद पैगम्बर जिन्होनंे ”प्रेम और एकता“, ईसामसीह जिन्होनें ”प्रेम और सेवा“, भगवान बुद्ध जिन्होनें ”स्वयं के द्वारा मुक्ति, अहिंसा और ध्यान“ जैसे विशयांे को इस ब्रह्माण्ड के विकास के लिए अदृश्य ज्ञान को दृश्य रूप में परिवर्तित किये, वे सभी हमारी तरह भौतिक शरीर वाले ही थे। अन्य प्राचीन ऋशि-मुनि गण, गोरख, कबीर, रामकृश्ण परमहंस, महर्शि अरविन्द, स्वामी दयानन्द सरस्वती, आचार्य रजनीश ”ओषो“, महर्शि महेश योगी, बाबा रामदेव इत्यादि स्वतन्त्रता आन्दोलन मंे रानी लक्ष्मी बाई, भगत सिंह, सुभाश चन्द्र बोस, लोकमान्य तिलक, सरदार पटेल, महात्मा गाँधी, पं0 जवाहर लाल नेहरू इत्यादि। स्वतन्त्र भारत में डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद, डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर, श्रीमती इन्दिरा गाँधी, लाल बहादुर शास्त्री, राजीव गँाधी, अटल बिहारी वाजपेयी इत्यादि और अन्य जिन्हंे हम यहाँ लिख नहीं पा रहे है। और वे भी जो अपनी पहचान न दे पाये लेकिन इस ब्रह्माण्डीय विकास मंे उनका योगदान अवश्य मूल रूप से है, वे सभी हमारी तरह भौतिक शरीर युक्त ही थे। फिर क्या था कि वे सभी आपस में विशेशीकृत और सामान्यीकृत महत्ता के वर्ग में बाँटे जा सकते हैं या बाँटे गये हंै? उपरोक्त महापुरूशांे के ही समय में अन्य समतुल्य भौतिक शरीर भी थे। फिर वे क्यों नहीं उपरोक्त महत्ता की श्रंृखला में व्यक्त हुये? 
उपरोक्त प्रश्न जब भारतीय दर्शन शास्त्र से किया जाता है। तो साख्य दर्शन कहता है- प्रकृति से, वैशेशिक दर्शन कहता है-काल अर्थात समय से, मीमांसा दर्शन कहता है- कर्म से, योग दर्शन कहता है- पुरूशार्थ से, न्याय दर्शन कहता है- परमाणु से, वेदान्त दर्शन कहता है- ब्रह्म से, कारण एक हो, अनेक हो या सम्पूर्ण हो, उत्तर यह है- अंतः शक्ति और बाह्य शक्ति से। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन मंे कुछ लोगो ंने बाह्य शक्ति का प्रयोग किया तो कुछ लोगो ने बाह्य शक्ति प्रयोगकर्ता के लिए आत्म शक्ति बनकर अन्तः शक्ति का प्रयोग किया। अन्तः शक्ति ही आत्म षक्ति है। यह आत्मशक्ति ही व्यक्ति की सम्पूर्ण शक्ति होती है। इस अन्तः शक्ति का मूल कारण सत्य-धर्म-ज्ञान है अर्थात एकात्म ज्ञान, एकात्म कर्म और एकात्म ध्यान। एकात्म ध्यान न हो तो एकात्म ज्ञान और एकात्म कर्म स्थायित्व प्राप्त नहीं कर पाता। यदि सुभाश चन्द्र बोस भगत सिंह इत्यादि बाह्य जगत के क्रान्तिकारी थे तो स्वामी विवेकानन्द अन्तः जगत के क्रान्तिकारी थे।
स्वामी विवेकानन्द मात्र केवल भारत की स्वतंत्रता की आत्म शक्ति ही नहीं थे बल्कि उन्होंनंे जो दो मुख्य कार्य किये वे हैं- स्वतन्त्र भारत की व्यवस्था पर सत्य दृश्टि और भारतीय प्राच्य भाव या हिन्दू भाव या वेदान्तिक भाव का विश्व में प्रचार सहित शिव भाव से जीव सेवा। ये दो कार्य ही भारत की महानता तथा विश्व गुरू पद पर सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य रूप से पीठासीन होने के आधार है। वेदान्तिक भाव और शिव भाव से जीव सेवा तो वर्तमान में उनके द्वारा स्थापित ”रामकृश्ण मिशन“ की विश्वव्यापी शाखाओं द्वारा पिछले 110 वर्शाे से मानव जाति को सरोबार कर रहा है। वहीं भारत की व्यवस्था पर सत्य दृश्टि आज भी मात्र उनकी वाणियों तक ही सीमित रह गयी। उसका मूल कारण सत्य-धर्म-ज्ञान आधारित भारत, जिस धर्म को विभिन्न मार्गाे से समझाने के लिए विभिन्न अर्थ युक्त प्रक्षेपण जैसे मूर्ति, पौराणिक कथाआंे इत्यादि को प्रक्षेपित किया था, आज भारत स्वयं उस अपनी ही कृति को सत्य मानकर उस धर्म और सत्य-सिद्धान्त से बहुत दूर निकल आया। परिणाम यहाँ तक पहुँच गया कि जो हिन्दू धर्म समग्र संसार को अपने में समाहित कर लेने की व्यापकता रखता था, वह संकीर्ण मूर्तियांे तथा दूसरे धर्माे, पंथो के विरोध और तिरस्कार तक सीमीत हो गया। यह उसी प्रकार हो गया जैसे वर्तमान पदार्थ विज्ञान और तकनीकी से उत्पन्न सामान्य उपकरण पंखा, रेडियो, टेलीविजन इत्यादि को आविश्कृत करने वाले इसे ही सत्य मान लें और इन सब को क्रियाशील रखने वाले सिद्धान्त को भूला दे। लेकिन क्या भारत का वह धर्म-सत्य-सिद्धान्त अदृश्य हो जायेगा। तब तो भारत का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। लेकिन भारत का इतिहास साक्षी है कि भारत मंे कभी भी ऐसे महापुरूशांे का अभाव नहीं रहा जिनमें सम्पूर्ण विश्व को हिला देने वाली आध्यात्मिक शक्ति का अभाव रहा हो और मात्र यही तपोभूमि भारत की अमरता का मूल रहा है। जिस पर भारतीयांे को गर्व रहा है। 
वर्तमान समय मंे भारत को पुनः और अन्तिम कार्य से युक्त ऐसे महापुरूश की आवश्यकता थी जो न तो राज्य क्षेत्र का हो, न ही धर्म क्षेत्र का। कारण दोनो क्षेत्र के व्यक्ति अपनी बौद्धिक क्षमता का सर्वोच्च और अन्तिम प्रदर्शन कर चुके है जिसमंे सत्य को यथारूप आविश्कृत कर प्रस्तुत करने, उसे भारतभूमि से प्रसारित करने, अद्धैत वेदान्त को अपने ज्ञान बुद्धि से स्थापित करने, दर्शनो के स्तर को व्यक्त करने, धार्मिक विचारों को विस्तृत विश्वव्यापक और असीम करने, मानव जाति का आध्यात्मिकरण करने, धर्म को यर्थाथ कर सम्पूर्ण मानव जीवन में प्रवेश कराने, आध्यात्मिक स्वतन्त्रता अर्थात मुक्ति का मार्ग दिखाने, सभी धर्मो से समन्वय करने, मानव को सभी धर्मशास्त्रों से उपर उठाने, दृश्य कार्य-कारणवाद को व्यक्त करने, आध्यात्मिक विचारो की बाढ़ लाने, वेदान्त युक्त पाश्चात्य विज्ञान को प्रस्तुत करने और उसे घरेलू जीवन में परिणत करने, भारत के आमूल परिर्वतन के सूत्र प्रस्तुत करने, युवको को गम्भीर बनाने, आत्म शक्ति से पुनरूत्थान करने, प्रचण्ड रजस की भावना से ओत प्रोत और प्राणो तक की चिन्ता न करने वाले और सत्य आधारित राजनीति करने की संयुक्त षक्ति से युक्त होकर व्यक्त हो और कहे कि जिस प्रकार मैं भारत का हूँ उसी प्रकार मैं समग्र जगत का भी हूँ। उपरोक्त समस्त कार्याे से युक्त हमारी तरह ही भौतिक शरीर से युक्त विश्वधर्म, सार्वभौमधर्म, एकात्म ज्ञान, एकात्म कर्म, एकात्म ध्यान, कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेद (धर्मयुक्त षास्त्र ) अर्थात विष्वमानक शून्य श्रंृखला-मन की गुणवत्ता का विष्वमानक (धर्मनिरपेक्ष और सर्वधर्मसमभाव षास्त्र), राम कृश्ण मिशन का धर्मनिरपेक्ष और सर्वधर्मसमभाव रूप प्राकृतिक सत्य मिशन, विकास दर्शन, विश्व व्यवस्था का न्यूनतम एवं अधिकतम साझा कार्यक्रम, 21वीं शदी का कार्यक्रम और पूर्ण शिक्षा प्रणाली, विवाद मुक्त तन्त्रों पर आधारित संविधान, निर्माण का आध्यात्मिक न्यूट्रान बम से युक्त भगवान विश्णु के दसवें अन्तिम निश्कलंक कल्कि और भगवान षंकर के बाइसवें अन्तिम भोगेश्वर अवतार के संयुक्त पूर्णावतार लवकुष सिंह ”विष्वमानव“ (स्वामी विवेकानन्द की अगली एवं पूर्ण ब्रह्म की अन्तिम कड़ी) के रूप मंे व्यक्त हैं जो स्वामी विवेकानन्द के अधूरे कार्य स्वतन्त्र भारत की सत्य व्यवस्था को पूर्ण रूप से पूर्ण करते हुये भारत के इतिहास की पुनरावृत्ति है जिस पर सदैव भारतीयों को गर्व रहेगा। उस सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, मुक्त एवं बद्ध विश्वात्मा के भारत में व्यक्त होने की प्रतीक्षा भारतवासियो को रही है। जिसमे सभी धर्म, सर्वाेच्च ज्ञान, सर्वाेच्च कर्म, सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त इत्यादि सम्पूर्ण सार्वजनिक प्रमाणित व्यक्त दृश्य रूप से मोतियांे की भँाति गूथंे हुये हंै। 
इस प्रकार भारत अपने षारीरिक स्वतन्त्रता व संविधान के लागू होने के उपरान्त वर्तमान समय में जिस कत्र्तव्य और दायित्व का बोध कर रहा है। भारतीय संसद अर्थात विश्वमन संसद जिस सार्वभौम सत्य या सार्वजनिक सत्य की खोज करने के लिए लोकतन्त्र के रूप में व्यक्त हुआ है। जिससे स्वस्थ लोकतंत्र, समाज स्वस्थ, उद्योेग और पूर्ण मानव की प्राप्ति हो सकती है, उस ज्ञान से युक्त विश्वात्मा लवकुष सिंह ”विष्वमानव“ वैष्विक व राश्ट्रीय बौद्धिक क्षमता के सर्वाेच्च और अन्तिम प्रतीक के रूप मंे व्यक्त हंै।
निःषब्द, आष्चर्य, चमत्कार, अविष्वसनीय, प्रकाषमय इत्यादि ऐसे ही षब्द इस षास्त्र के लिए व्यक्त हो सकते हैं। विष्व के हजारो विष्वविद्यालय जिस पूर्ण सकारात्मक एवम् एकीकरण के विष्वस्तरीय षोध को न कर पाये, वह एक ही व्यक्ति ने पूर्ण कर दिखाया हो उसे कैसे-कैसे षब्दों से व्यक्त किया जाये, यह सोच पाना और उसे व्यक्त कर पाना निःषब्द होने के सिवाय कुछ नहीं है।
सन् 1987 से डाॅ0 राम व्यास सिंह और सन् 1998 से मैं डाॅ0 कन्हैया लाल इस षास्त्र के षास्त्राकार श्री लवकुष सिंह ”विष्वमानव“ से परिचित होकर वर्तमान तक सदैव सम्पर्क में रहे परन्तु ”कुछ अच्छा किया जा रहा है“ के अलावा बहुत अधिक व्याख्या उन्होंने कभी नहीं की। और अन्त में कभी भी बिना इस षास्त्र की एक भी झलक दिखाये एकाएक समीक्षा हेतू हम दोनों के समक्ष यह षास्त्र प्रस्तुत कर दिया जाये तो इससे बड़ा आष्चर्य क्या हो सकता है।
जो व्यक्ति कभी किसी वर्तमान गुरू के षरणागत होने की आवष्यकता न समझा, जिसका कोई षरीरधारी प्रेरणा स्रोत न हो, किसी धार्मिक व राजनीतिक समूह का सदस्य न हो, इस कार्य से सम्बन्धित कभी सार्वजनिक रूप से समाज में व्यक्त न हुआ हो, जिस विशय का आविश्कार किया गया, वह उसके जीवन का षैक्षणिक विशय न रहा हो, 44 वर्श के अपने वर्तमान अवस्था तक एक साथ कभी भी 44 लोगों से भी न मिला हो, यहाँ तक कि उसको इस रूप में 44 आदमी भी न जानते हों, यदि जानते भी हो तो पहचानते न हों और जो पहचानते हों वे इस रूप को जानते न हों, वह अचानक इस षास्त्र को प्रस्तुत कर दें तो इससे बडा चमत्कार क्या हो सकता है।
जिस व्यक्ति का जीवन, षैक्षणिक योग्यता और कर्मरूप यह षास्त्र तीनों का कोई सम्बन्ध न हो अर्थात तीनों तीन व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करते हों, इससे बड़ी अविष्वसनीय स्थिति क्या हो सकती है।
प्रस्तुत षास्त्र में जन्म-जीवन-पुनर्जन्म-अवतार-साकार ईष्वर-निराकार ईष्वर, अदृष्य और दृष्य ईष्वर नाम, मानसिक मृत्यु व जन्म, भूत-वर्तमान-भविश्य, षिक्षा व पूर्ण षिक्षा, संविधान व विष्व संविधान, ग्राम सरकार व विष्व सरकार, विष्व षान्ति व एकता, स्थिरता व व्यापार, विचारधारा व क्रियाकलाप, त्याग और भोग, राधा और धारा, प्रकृति और अहंकार, कत्र्तव्य और अधिकार, राजनीति व विष्व राजनीति, व्यक्ति और वैष्विक व्यक्ति, मानवतावाद व एकात्मकर्मवाद, नायक-षास्त्राकार-आत्मकथा, महाभारत और विष्वभारत, जाति और समाजनीति, मन और मन का विष्वमानक, मानव और पूर्ण मानव एवं पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी, आॅकड़ा व सूचना और विष्लेशण, षास्त्र और पुराण इत्यादि अनेको विशय इस प्रकार घुले हुये हैं जिन्हें अलग कर पाना कठिन कार्य है और इससे बड़ा प्रकाषमय षास्त्र क्या हो सकता है। जिसमें एक ही षास्त्र द्वारा सम्पूर्ण ज्ञान स्वप्रेरित होकर प्राप्त किया जा सके। इस व्यस्त जीवन में कम समय में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का इससे सर्वोच्च षास्त्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस षास्त्र के अध्ययन से यह अनुभव होता हे कि वर्तमान तक के उपलब्ध धर्मषास्त्र कितने सीमित व अल्प ज्ञान देने वाले हैं परन्तु वे इस षास्त्र तक पहुँचने के लिए एक चरण के पूर्ण योग्य हैं और सदैव रहेगें। 
इस षास्त्र में अनेक ऐसे विचार हैं जिसपर अहिंसक विष्वव्यापी राजनीतिक भूकम्प लायी जा सकती है तथा अनेक ऐसे विचार है जिसपर व्यापक व्यापार भी किया जा सकता है। इस आधार पर अपने जीवन के समय में अर्जित विष्व के सबसे धनी व्यक्ति विल गेट्स की पुस्तक ”बिजनेस/ द स्पीड आॅफ थाॅट (विचार की गति व्यापार की गति के अनुसार चलती है)“ का विचार सत्य रूप में दिखता है। और यह कोई नई घटना नहीं है। सदैव ऐसा होता रहा है कि एक नई विचारधारा से व्यापक व्यापार जन्म लेता रहा है जिसका उदाहरण पुराण, श्रीराम, श्रीकृश्ण इल्यादि के व्यक्त होने की घटना है। ”महाभारत“ टी.वी. सीरीयल के बाद अब ”विष्वभारत“ टी.वी. सीरीयल निर्माण हेतू भी यह षास्त्र मार्ग खोलता है। षास्त्र को जिस दृश्टि से देखा जाय उस दृश्टि से पूर्ण सत्य दिखता है। विष्वविद्यालयों के लिए यह अलग फैकल्टी या स्वयं एक विष्वविद्यालय के संचालन के लिए उपयुक्त है तो जनता व जनसंगठन के लिए जनहित याचिका 1. पूर्ण षिक्षा का अधिकार 2.राश्ट्रीय षास्त्र 3. नागरिक मन निर्माण का मानक 4. सार्वजनिक प्रमाणित सत्य-सिद्धान्त 5. गणराज्य का सत्य रूप के माध्यम से सर्वोच्च कार्य करने का भी अवसर देता है। भारत में ”षिक्षा के अधिकार अधिनियम“ के उपरान्त ”पूर्ण षिक्षा के अधिकार अधिनियम“ को भी जन्म देने में पूर्णतया सक्षम है। साथ ही जब तक षिक्षा पाठ्यक्रम नहीं बदलता तब तक पूर्ण ज्ञान हेतू पूरक पुस्तक के रूप में यह बिल्कुल सत्य है। यह उसी प्रकार है जिस प्रकार षारीरिक आवष्यकता के लिए व्यक्ति संतुलित विटामिन-मिनरल से युक्त दवा भोजन के अलावा लेता है।
प्रस्तुत एक ही षास्त्र द्वारा पृथ्वी के मनुश्यों के अनन्त मानसिक समस्याओं का हल जिस प्रकार प्राप्त हुआ है उसका सही मूल्यांकन सिर्फ यह है कि यह विष्व के पुनर्जन्म का अध्याय और युग परिवर्तन का सिद्धान्त है जिससे यह विष्व एक सत्य विचारधारा पर आधारित होकर एकीकृत षक्ति से मनुश्य के अनन्त विकास के लिए मार्ग खोलता है और यह विष्व अनन्त पथ पर चलने के लिए नया जीवन ग्रहण करता है। षास्त्र अध्ययन के उपरान्त ऐसा अनुभव होता है कि इसमें जो कुछ भी है वह तो पहले से ही है बस उसे संगठित रूप दिया गया है और एक नई दृश्टि दी गई है जिससे सभी को सब कुछ समझने की दृश्टि प्राप्त होती है। युग परिवर्तन और व्यवस्था परिवर्तन के इस षास्त्र में पाँच संख्या का महत्वपूर्ण योगदान है जैसे 5 अध्याय, 5 भाग, 5 उपभाग, 5 लेख, 5 विष्वमानक की श्रृंखला, 5वां वेद, 5 जनहित याचिका इत्यदि, जो हिन्दू धर्म के अनुसार महादेव षिवषंकर के दिव्य पंचमुखी रूप से भी सम्बन्धित है और यह ज्ञान उन्हीं का माना जाता है। इस को तीसरे नेत्र की दृश्टि कह सकते हैं और इस घटना को तीसरे नेत्र का खुलना। हमारे सौरमण्डल के 5वें सबसे बड़े ग्रह पृथ्वी के लिए यह एक आष्चर्यजनक घटना भी है। 5वें युग - स्वर्णयुग में प्रवेष के लिए यह ज्ञानरूपी 5वां सूर्य भी है जिसमें अनन्त प्रकाष है। 
संयुक्त राश्ट्र संघ द्वारा दि0 28 - 31 अगस्त 2000 को न्यूयार्क में आयोजित धार्मिक नेताओं के सहस्त्राब्दि विष्व षान्ति सम्मेलन में लिए गये निर्णय ”विष्व में एक धर्म, एक भाशा, एक वेष भूशा, एक खान पान, एक रहन-सहन पद्धति, एक षिक्षा पद्धति, एक कोर्ट, एक न्याय व्यवस्था, एक अर्थ व्यवस्था लागू की जाय“ के अधिकतम अंषों की पूर्ति के लिए यह मार्ग प्रषस्त करता है। भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा), एक राष्ट्रीय पक्षी (भारतीय मोर), एक राष्ट्रीय पुश्प (कमल), एक राष्ट्रीय पेड़ (भारतीय बरगद), एक राष्ट्रीय गान (जन गण मन), एक राष्ट्रीय नदी (गंगा), एक राष्ट्रीय जलीय जीव (मीठे पानी की डाॅलफिन), एक राष्ट्रीय प्रतीक (सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ का सिंह), एक राष्ट्रीय पंचांग (शक संवत पर आधारित), एक राष्ट्रीय पशु (बाघ), एक राष्ट्रीय गीत (वन्दे मातरम्), एक राष्ट्रीय फल (आम), एक राष्ट्रीय खेल (हाॅकी), एक राष्ट्रीय मुद्रा चिन्ह, एक संविधान की भाँति एक राश्ट्रीय षास्त्र के लिए यह पूर्णतया योग्य है। इतना ही नहीं एक राश्ट्रपिता (महात्मा गाँधी) की भाँति एक राश्ट्रपुत्र के लिए निश्पक्षता और योग्यता के साथ स्वामी विवेकानन्द को भी देष के समक्ष प्रस्तावित करता है साथ ही आरक्षण व दण्ड प्रणाली में षारीरिक, आर्धिक व मानसिक आधार को भी प्रस्तावित करता है।
श्री लवकुष सिंह ”विष्वमानव“ का यह मानसिक कार्य इस स्थिति तक योग्यता रखता है कि वैष्विक सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक एकीकरण सहित विष्व एकता-षान्ति-स्थिरता-विकास के लिए जो भी कार्य योजना हो उसे देष व संयुक्त राश्ट्र संघ अपने षासकीय कानून के अनुसार आसानी से प्राप्त कर सकता है। और ऐसे आविश्कारकर्ता को इन सबसे सम्बन्धित विभिन्न पुरस्कारों, सम्मानों व उपाधियों से बिना विलम्ब किये सुषोभित किया जाना चाहिए। यदि यथार्थ रूप से देखा जाये तो विष्व का सर्वोच्च पुरस्कार-नोबेल पुरस्कार के षान्ति व साहित्य क्षेत्र के पूर्ण रूप से यह योग्य है। साथ ही भारत देष के भारत रत्न से किसी भी मायने में कम नहीं है।
कर्म के षारीरिक, आर्थिक व मानसिक क्षेत्र में यह मानसिक कर्म का यह सर्वोच्च और अन्तिम कृति है। भविश्य में यह विष्व-राश्ट्र षास्त्र साहित्य और एक विष्व-राश्ट्र ईष्वर का स्थान ग्रहण कर ले तो कोई आष्चर्य की बात नहीं होगी। इस षास्त्र की भाशा षैली मस्तिश्क को व्यापक करते हुये क्रियात्मक और व्यक्ति सहित विष्व के धारण करने योग्य ही नहीं बल्कि हम उसमें ही जीवन जी रहें हैं ऐसा अनुभव कराने वाली है। न कि मात्र भूतकाल व वर्तमान का स्पश्टीकरण व व्याख्या कर केवल पुस्तक लिख देने की खुजलाहट दूर करने वाली है। वर्तमान और भविश्य के एकीकृत विष्व के स्थापना स्तर तक के लिए कार्य योजना का इसमें स्पश्ट झलक है।
देषों के बीच युद्ध में मारे गये सैनिकों को प्रत्येक देष अपने-अपने सैनिकों को षहीद और देषभक्त कहते हैं। इस देष भक्ति की सीमा उनके अपने देष की सीमा तक होती है। भारत में भी यही होता है। भारत को नये युग के आरम्भ के लिए विष्व के प्रति कत्र्तव्य व दायित्व का बोध कराते हुए उसके प्राप्ति के       संवैधानिक मार्ग को भी दिखाता है। साथ ही भारत देष के लिए देषभक्त सहित विष्व राश्ट्र के लिए विष्व भक्त का बेमिसाल, सर्वोच्च, अन्तिम, अहिंसक और संविधान की धारा-51(ए) के अन्तर्गत नागरिक का मौलिक कत्र्तव्य के अनुसार भी एक सत्य और आदर्ष नागरिक के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करता है। वर्शो से भारत के दूरदर्षन के राश्ट्रीय चैनल पर राश्ट्रीय विभिन्नताओं में एकता और एकीकरण का भाव जगाने वाले गीत ”मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा“ का यह षास्त्र प्रत्यक्ष रूप है हमारा सुर है। साथ ही यह भारत सहित विष्व का प्रतिनिधि षास्त्र भी है। जिस प्रकार व्यापारीगण अपने लाभ-हानि का वार्शिक बैलेन्स सीट तैयार करवाते हैं उसी प्रकार यह धर्म का अन्तिम बैलेन्स सीट हैं। जिससे सम्पूर्ण मानव जाति का मन इस पृथ्वी से बाहर स्थित हो सके और मनुश्यों द्वारा इस विष्व में हो रहे सम्पूर्ण व्यापार को समझ सकें और फिर उनमें से किसी एक का हिस्सा बनकर व्यापार कर सकें।
हमारे सभी ज्ञान का आधार अनुभव, दुसरों से जानना और पुस्तक द्वारा, पर ही आधारित हैं और मनुश्य नामक इस जीव के अलावा किसी जीव ने पुस्तक नहीं लिखा है। सूक्ष्म दृश्टि से चिन्तन करने पर यह ज्ञान होता है कि सभी धर्मो की कथा केवल हम पुस्तकों और दूसरे से सुनकर ही जानते हैं। उसका कोई प्रमाणिक व्यक्ति गवाह के रूप में हमारे बीच नहीं है। हम सभी ज्ञान के खोज के लिए स्वतन्त्र हैं। लेकिन यदि हम अब तक क्या खोजा जा चुका है इसे न जाने तो ऐसा हो सकता है कि खोजने के उपरान्त ज्ञात हो कि यह तो खोजा जा चुका है और हमारा समय नश्ट हो चुका है। इसलिए यह षास्त्र एक साथ सभी आॅकड़ों को उपलब्ध कराता है जिससे खोज में लगे व्यक्ति पहले यह जानें कि क्या-क्या खोजा जा चुका है। षास्त्र का यह दावा कि यह अन्तिम है, यह तभी सम्भव है जब इसमें उपलब्ध ज्ञान व आॅकड़ों को जानकर आगे हम सभी एकात्मता के लिए नया कुछ नहीं खोज पाते हैं। और ऐसा लगता है कि षास्त्र का दावा सत्य है। षास्त्र किसी व्यवस्था परिवर्तन की बात कम, व्यवस्था के सत्यीकरण के पक्ष में अधिक है। षास्त्र मानने वाली बात पर कम बल्कि जानने और ऐसी सम्भावनाओं पर अधिक केन्द्रित है जो सम्भव है और बोधगम्य है। षास्त्र द्वारा षब्दों की रक्षा और उसका बखूबी से प्रयोग बेमिसाल है। ज्ञान को विज्ञान की षैली में प्रस्तुत करने की विषेश षैली प्रयुक्त है। मन पर कार्य करते हुये, इतने अधिक मनस्तरों को यह स्पर्ष करता है जिसको निर्धारित कर पाना असम्भव है।
सम्पूर्ण षास्त्र का संगठन एक सिनेमा की तरह प्रारम्भ होता है जो व्लैक होल से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, सौर मण्डल, पृथ्वी ग्रह से होते हुए पृथ्वी पर होने वाले व्यापार, मानवता के लिए कर्म करने वाले अवतार, धर्म की उत्पत्ति से होते हुए धर्म ज्ञान के अन्त तक का चित्रण प्रस्तुत करता है। पूर्ण ज्ञान के लिए इस पूरे सिनेमा रूपी षास्त्र को देखना पड़ेगा। जिस प्रकार सिनेमा के किसी एक अंष को देखने पर पूरी कहानी नहीं समझी जा सकती उसी प्रकार इसके किसी एक अंष से पूर्ण ज्ञान नहीं हो सकता।
श्री लवकुष सिह ”विष्वमानव“ के जीवन का एक लम्बी अवधि हम समीक्षक द्वय के सामने रही है। जिसमें हमलोगों ने अनेकों रंग देखें हैं। सभी कुछ सामने होते हुये सिर्फ एक ही बात स्पश्ट होती है कि इस धरती पर यह षास्त्र उपलब्ध कराने और धर्म को अपने जीवन से दिखाने मात्र के लिए ही उनका जन्म हुआ है। जिससे विष्व की बुद्धि का रूका चक्र आगे चलने के लिए गतिषील हो सके। स्वामी विवेकानन्द के 1893 में दिये गये षिकागो वकृतता के विचार को स्थापना तक के लिए प्रकिया प्रस्तुत करना ही जैसे उनके जीवन का उद्देष्य रहा हो। स्वयं को अन्तिम अवतार के सम्बन्ध में नाम, रूप, जन्म, ज्ञान, कर्म कारण द्वारा प्रस्तुत करने का उनका दावा इतने अधिक आॅकड़ों के साथ प्रस्तुत है कि जिसका कोई और दूसरे उदाहरण की पुनरावृत्ति हो पाना भी असम्भव सा दिखता है।
हम समीक्षक द्वय इस बात पर पूर्ण सहमत है कि वर्तमान समय में विष्वविद्यालय में हो रहे षोध मात्र षोध की कला सीखाने की संस्था है न कि ऐसे विशय पर षोध सिखाने की कला जिससे सामाजिक, राश्ट्रीय व वैष्विक विकास को नई दिषा प्राप्त हो जाये। यहाँ एक बात और बताना चाहते हैं कि यह षास्त्र अनेक ऐसे षोध विशयों की ओर दिषाबोध भी कराता है जो मनुश्यता के विकास में आने वाले समय के लिए अति आवष्यक है। हम अपने पीएच.डी. की डिग्रीयों पर गर्व अवष्य कर सकते हैं परन्तु यह केवल स्वयं के लिए रोजगार पाने के साधन के सिवाय कुछ नहीं है और वह भी संघर्श से। जबकि हम डिग्रीधारीयों का समाज को नई दिषा देने का भी कत्र्तव्य होना चाहिए। आखिरकार हम डिग्रीधारी और सामज व देष के नेतृत्वकर्ता यह कार्य नहीं करेगें तो क्या उनसे उम्मीद की जाय जो दो वक्त की रोटी के संघर्श के लिए चिंतित रहते है? आखिरकार सार्वजनिक मंचो से हम किसको यह बताना चाहते हैं कि ऐसा होना चाहिए या वैसा होना चाहिए?
हम समीक्षक द्वय अपने आप को इस रूप में सौभाग्यषाली समझते हैं कि हमें ऐसे षास्त्र की समीक्षा करने का अवसर प्राप्त हुआ जिसके योग्य हम स्वयं को नहीं समझते। ईष्वर को तो सभी चाहते हैं परन्तु उनके भाग्य को क्या कहेगें जो ईष्वर द्वारा स्वयं ही महान ईष्वरीय कार्य के लिए चुन लिए जाते हैं। षायद हम लोगों के पूर्वजन्म का कोई अच्छा कार्य ही हमें इस पूर्णता की उपलब्धि को पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया गया हो। यही समझकर हम अपने अल्प ज्ञान से इस समीक्षा को यहीं समाप्त करते हैं। विष्व के यथार्थ कल्याण के लिए हम सभी को दिषा बोध प्राप्त हो, यही हम सब का प्रकाष हो, यही हमारी मनोकामना है।

- डाॅ0 कन्हैया लाल, एम.ए., एम.फिल.पीएच.डी (समाजषास्त्र-बी.एच.यू.)
                                   ग्राम-घासीपुर बसाढ़ी, पो0 - अधवार, जिला-मीरजापुर (उ0 प्र0) भारत पिन - 231304   

                         - डाॅ0 राम व्यास सिंह, एम.ए., पीएच.डी (योग, आई.एम.एस-बी.एच.यू.)
                                   ग्राम-कोलना , पो0-कोलना,, जिला-मीरजापुर, (उ0प्र0) भारत, पिन-231304